+ आगे नग्नत्व के और भी गुण कहते हैं- -
जिणपडिरूवं विरियायारो रागादिदोसपरिहरणं ।
इच्चेवमादिबहुगा अच्चेलक्के गुणा होंति॥87॥
जिन प्रतिरूप वीर्य-आचार तथा रागादि दोष परिहार ।
इत्यादिक अनेक गुण संयुत नग्नरूप यह करो विचार॥87॥
अन्वयार्थ : यह निर्ग्रन्थलिंग प्रतिबिम्ब है/नमूना है ।

  सदासुखदासजी