पं-सदासुखदासजी
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आगे नग्नत्व के और भी गुण कहते हैं-
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जिणपडिरूवं विरियायारो रागादिदोसपरिहरणं ।
इच्चेवमादिबहुगा अच्चेलक्के गुणा होंति॥87॥
जिन प्रतिरूप वीर्य-आचार तथा रागादि दोष परिहार ।
इत्यादिक अनेक गुण संयुत नग्नरूप यह करो विचार॥87॥
अन्वयार्थ :
यह निर्ग्रन्थलिंग प्रतिबिम्ब है/नमूना है ।
सदासुखदासजी