इय सव्वसमिदकरणो ठाणासणसयणगमणकिरियासु ।
णिगिणं गुत्तिमुवगदो पग्गहिवददरं परक्कमदि॥88॥
आसन गमन शयन आदिक में मर्यादित सब इन्द्रिय हैं ।
वे त्रिगुप्ति-धर नग्न रहें उत्कृष्ट पराक्रम प्राप्त करें॥88॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार आसन में, शय्या में, गमनक्रिया में सर्व इन्द्रियाँ मर्यादित जिसकी हो गई हैं - ऐसा पुरुष नग्नता को, गुप्ति को प्राप्त करके उत्कृष्ट पराक्रम को धारण करता है ।
सदासुखदासजी