+ अब कहते हैं - जो अपवाद लिंग को प्राप्त हुआ है, उसके भी अनुक्रम करके शुद्धता होती ही है- -
अववादियलिंगकदो विसयासत्तिं अगूहमाणो य ।
णिंदणगरहणजुत्तो सुज्झदि उवधिं परिहरंतो॥89॥
अपवाद लिंगधारी श्रावक भी अपनी शक्ति छिपाए बिना ।
निन्दा गर्हा करें और परिग्रह त्यागें निज शुद्धि लहें॥89॥
अन्वयार्थ : अपवाद लिंग को प्राप्त जो श्रावक अथवा श्राविका, क्षुल्लक, आर्यिका - वे भी अपनी शक्ति को नहीं छिपाते हुए निंदा, गर्हा से युक्त परिग्रह को त्यागकर शुद्धता को प्राप्त होते हैं ।

  सदासुखदासजी