+ आगे लिंग नामक अधिकार में केशलोंच का वर्णन पाँच गाथाओं द्वारा करते हैं- -
केसा संसज्जंति हु णिप्पडिकारस्स दुपरिहारा य ।
सयणादिसु ते जीवा दिट्ठा आगंतुया य तहा॥90॥
संस्कार रहित केशों में भी अनिवार्य जीव उत्पत्ति सदा ।
शयनादिक के समय केशगत जीवों को होती बाधा॥90॥
अन्वयार्थ : जो निह्नप्रतीकारक अर्थात् तेलादि संस्कार रहित केश रखते हैं; उनके केशों में जुआँ, लीखों की उत्पत्ति होती है और सम्मूर्छन जीवों की उत्पत्ति दुह्नख से भी/बहुत प्रयत्न से भी निवारी नहीं जाती तथा शयनादि में निद्रा के वशीभूत हुआ केशों के कारण प्राप्त हुए जो कीडा-कीडी, मच्छर, मकडी, बिच्छू, करणासला/कसारी, उनकी बाधा नहीं टलती है । इसलिए केश रखना बडी हिंसा ही है ।

  सदासुखदासजी