जूगाहिं य लिक्खाहिं य बाधिज्जंतस्स संकिलेसो य ।
सघट्टिज्जंति य ते कंडुयणे तेण सो लोचो॥91॥
जुआँ लीख की बाधा सहने वाले को होता संक्लेश ।
खुजलाने से हिंसा होती अतः केश-लुंचन है श्रेष्ठ॥91॥
अन्वयार्थ : जुआँ, लीखों के द्वारा बाधा को प्राप्त हुए के बहुत संक्लेश होता है । वह संक्लेश अशुभ परिणाम तथा पापस्वरूप है । इससे आत्मविराधना होती है और जब बाधा सही नहीं जाती, तब जो हस्तादि से खुजलावे तो वे जीव संघटन मरण को प्राप्त हों, इसलिए आगम की आज्ञाप्रमाण उत्कृष्ट दो माह में, मध्यम तीन माह में और जघन्य चार माह में मस्तक तथा दाढी-मूँछों के केशों को हस्त की अंगुली से निकालना/लोंच करना श्रेष्ठ है । अत: जो केश रखते हैं, उनके पूर्वोक्त दोष लगते हैं और यदि मुंडन करावें तो पैसा नहीं तथा शूद्रादिकों के पास बैठना, स्पर्शना, पराधीन होना - यह बडा दोष है और यदि उस्तरा, कैंची, नकचूटा रखते हैं तो निर्ग्रन्थलिंग जगत में निंद्य हो जायेगा एवं शस्त्रधारी का भयंकर नग्नरूप, उसकी कौन प्रतीति करेगा? इसलिए लोंच करना ही श्रेष्ठ है ।
सदासुखदासजी