वज्जेदि बंभचारी गंधं मल्लं च धूववासं वा ।
संवाहणपरिमद्दणपिणिद्धणादीणि य विमुत्ती॥96॥
गन्ध विलेपन पुष्प धूप मुखवास न हो ब्रह्मचारी को ।
पद-मर्दन, तन-मर्दन, कुट्टन वर्जित हैं ब्रह्मचारी को॥96॥

  सदासुखदासजी