पं-सदासुखदासजी
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असंयम होता है और सप्त धातुमय इस देह का स्नान करने से शुचिता भी नहीं होती है । जैसे -
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इरियादाणणिखेवे विवेगठाणे णिसीयणे सयणे ।
उव्वत्तणपरिवत्तण पसारणउं टणामरसे॥98॥
शास्त्र, कमण्डलु धरे-उठावे गमन करे, लेटे, बैठे ।
मल-मूत्रादि विसर्जन में भी देखभाल कर पीछी से॥98॥
सदासुखदासजी