
एवं विचारयित्ता सदि माहप्पे य आउगे असदि ।
अणिगूहिदबलविरिओ कुणदि मदिं भत्तवोसरणे॥161॥
यह विचार कर तीव्र स्मृति हो, अल्प आयु जब शेष रहे ।
निज बल वीर्य छिपाए बिना मुनि भक्त-प्रत्याख्यान करे॥161॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार विचार करके, अपने स्मरण की महिमा को जानकर आयु मंद/अल्प रहने पर अपने बल/वीर्य को छिपाये बिना भक्तप्रत्याख्यान/क्रम-क्रम से आहार त्याग करने में अपनी बुद्धि लगावें ।
सदासुखदासजी