+ आगे भक्तप्रत्याख्यान का और भी कारण कहते हैं- -
पुव्वुत्ताणण्णदरे सल्लेहणकारणे समुप्पण्णे ।
तह चेव करिज्ज मदिं भत्तपइण्णाए णिच्छयदो॥162॥
सल्लेखना ग्रहण करने के पूर्व उक्त कारण होवें ।
उसी प्रकार भक्त-प्रत्याख्यान ग्रहण में मति करें॥162॥
अन्वयार्थ : जैसे अल्प आयु रहने पर सल्लेखना मरण करते हैं, तैसे ही पूर्व में कहे गये जो असाध्य रोगादि भक्तप्रत्याख्यान के कारण, उनमें से एक भी कारण उत्पन्न होने पर, अनुक्रम से भोजन के त्यागरूप भक्तप्रत्याख्यान मरण में ही निश्चय से बुद्धि को लगायें ।

  सदासुखदासजी