पं-सदासुखदासजी
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आगे आराधना करने वाले के परिणाम तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं-
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जाव य सुदी ण णस्सदि जाव य जोगा ण मे पराहीणा ।
जाव य सढ्ढा जायदि इंदियजोगा अपरिहीणा॥163॥
जब तक स्मृति नष्ट न हो आतापन योग न हो परतन्त्र ।
जब तक है श्रद्धा इन्द्रिय विषयों से करे नहीं सम्बन्ध॥163॥
सदासुखदासजी