
संजमसाधणमेत्तं उवधिं मोत्तूण सेसयं उवधिं ।
पजहदि विसुद्धलेस्सो साधू मुत्तिं गवेसंतो॥167॥
जिसकी लेश्या है विशुद्ध अरु जिसे मुक्ति से है अनुराग ।
संयम साधन परिग्रह रखकर और सभी का करता त्याग॥167॥
अन्वयार्थ : जिसके लेश्या की उज्ज्वलता हुई है - ऐसे वीतरागी साधु संयम के साधन मात्र कमंडल और पीछी के अलावा और संपूर्ण उपधि/परिग्रह का त्याग करते हैं । कैसे हैं साधु? मोक्ष/ कर्मों से छूटना, उसे अवलोकन करते हैं ।
सदासुखदासजी