पंचविहं जे सुद्धिं अपाविदूण मरणमुवणमंति ।
पंचविहं च विवेगं ते खु समाधिं ण पावेंति॥169॥
पाँच प्रकार शुद्धि अरु पाँच विवेक प्रकट है नहिं जिनको ।
जिनका होवे मरण, समाधि प्राप्त नहीं ही है उनको॥169॥
अन्वयार्थ : पंचप्रकार की शुद्धि और पंचप्रकार के विवेक को प्राप्त न करके जो मरण को प्राप्त होते हैं, वे समाधिमरण को नहीं पाते हैं ।

  सदासुखदासजी