पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता णिखिलेण णिच्छिदमदीया ।
पंचविहं च विवेगं ते हु समाधिं परमुवेंति॥170॥
पंचप्रकार शुद्धि अरु पंचप्रकार विवेक प्रकट जिनको ।
पूर्णतया निश्चित मतिवाले परम समाधि कही उनको॥170॥
अन्वयार्थ : जो निश्चितबुद्धि पंचप्रकार की शुद्धि तथा पंचप्रकार के विवेक को समस्तपने से / सम्पूर्णपने को प्राप्त होते हैं, वे सर्वोत्कृष्ट समाधिमरण को प्राप्त होते हैं ।

  सदासुखदासजी