+ अथवा पंच प्रकार के विवेक निम्न प्रकार से भी जानना - -
अहवा सरीरसेज्जा संथारुवहीण भत्तपाणस्स ।
वेज्जावच्चकराण य होइ विवेगो तहा चेव॥174॥
अथवा देह वसति संस्तर का भक्तपान अरु उपधि विवेक ।
वैयावृत्त करने वालों का द्रव्य-भाव द्वय भेद विवेक॥174॥
अन्वयार्थ : अथवा शरीर से विवेक, वसतिका-संस्तर विवेक, उपकरण विवेक, भक्तपान विवेक, वैयावृत्त्यकरण विवेक - ये भी पंच प्रकार के विवेक हैं । उसमें भी अपने शरीर से अपने शरीर का उपद्रव दूर करना तथा अपने पर उपद्रव करने वाले मनुष्य, तिर्यंच, देव को; डाँस, मच्छर, बिच्छू, सर्प, श्वान इत्यादि को हाथ से निवारण नहीं करना; मुझ पर उपद्रव मत करो, मेरी रक्षा करो, मैं दु:खी हूँ - इत्यादि वचनों से भी निवारण नहीं करना; पीछी आदि उपकरणों से भी निवारण नहीं करना, परंतु यह शरीर तो विनाशीक है, पर है, अचेतन है, मेरा स्वरूप नहीं, इत्यादि रूप से शरीर का चिंतवन करना - यह शरीर विवेक है ।
वसतिका-संस्तर में राग रहित शयन, आसन करना, यह वसतिका-संस्तर विवेक हैअथवा रागकारक स्थानों में शयन, आसन नहीं करना वसतिका-संस्तर विवेक है । उपकरण में ममता का अभाव उपकरणविवेक है । भोजन में, जल आदि पीने में अति गृद्धता का अभाव भक्तपान विवेक है । पर से वैयावृत्त्य उपकार नहीं चाहना - यह वैयावृत्त्यकरण विवेक है ।

  सदासुखदासजी