+ वह भावश्रिति कैसे प्राप्त हो? वही कहते हैं - -
सल्लेहणं करेंतो सव्वं सुहसीलयं पयहिदूण ।
भावसिदिमारुहित्ता विहरेज्ज सरीरणिव्विणो॥177॥
सल्लेखना क्रियारत साधु सुविधाओं का कर परित्याग ।
तन विरक्त हो भाव-श्रिति पर आरोहण कर करे विहार॥177॥
अन्वयार्थ : सल्लेखना करने वाला पुरुष शरीर से विरक्त होकर सर्व सुखिया स्वभाव को छोडकर शुद्ध भावों की परम्परा को प्राप्त करके प्रवर्ते ।

  सदासुखदासजी