+ आगे शुभ परिणाम का क्रम कहते हैं- -
सिदिमारुहित्तु कारणपरिभुत्तं उवधिमणुवधिं सेज्जं ।
परिकम्मादिउवहदं वज्जित्ता विहरदि विदण्हू॥180॥
शुभ परिणामों की श्रेणी चढ़ने वाले क्रमज्ञ1 मुनिराज ।
कारणभूत परिग्रह एवं अल्प उपधि तजते तप धार॥180॥
अन्वयार्थ : अनुक्रम के जानने वाले ज्ञानी भावों की शुद्धतारूप श्रेणी/नसैनी पर चढकर और जिसका कारण नहीं रहा, ऐसे शास्त्रादि उपकरण तथा अनुपधि/वैयावृत्त्यादि कराने की इच्छा और लीपना/झाडू लगाना आदि आरंभ सहित जो शय्या, वसतिका आदि उनको त्याग कर प्रवर्तन करते हैं ।

  सदासुखदासजी