
णाणस्स केवलीणं धम्मस्साइरिय सव्वसाहूणं ।
माइय अवण्णवादी खिब्भिसियं भावणं कुणइ॥186॥
माया तथा अवर्णवाद जो करे ज्ञान अरु केवल में ।
धर्म और आचार्य साधु में यही भावना किल्विष है॥186॥
अन्वयार्थ : ज्ञान की निन्दा करे, वह ज्ञान का अवर्णवाद है । केवली को कवलाहार कहना और क्षुधा-रोगादि वेदना बतलाना, वह केवली का अवर्णवाद है । सच्चे धर्म में दूषण लगाना, वह धर्म का अवर्णवाद है । आचार्य-साधुजनों को झूठा दूषण लगाना आचार्य तथा साधुओं का अवर्णवाद है । सत्यार्थ ज्ञान को, दशलक्षणरूप धर्म को, केवली भगवान को और आचारांग की आज्ञाप्रमाण प्रवर्तने वाले यथोक्त आचार के धारक आचार्य, उपाध्याय और साधु को मायाचार से दूषण लगाता है, उसको किल्विष भावना होती है ।
सदासुखदासजी