+ आगे आसुरी भावना कहते हैं- -
अणुबंधरोसविग्गहसंसत्ततवो णिमित्तपडिसेवी ।
णिक्किवणिराणुतावी आसुरिअं भावणं कुणदि॥188॥
तीव्र क्रोध अरु कलहयुक्त-तप ज्योतिष से जीविका करे ।
निर्दय पश्चात्ताप रहित जो वह आसुरी भावना करे॥188॥
अन्वयार्थ : बाँधा है अन्य भव पर्यंत गमन/जाने वाला रोष जिसने और कलह सहित है तप जिसका तथा निमित्तज्ञान से भोजन, वसतिकादि, आजीविका करने वाला, दया रहित निर्दयी, अति आताप करने वाला पुरुष आसुरी भावना करता है ।

  सदासुखदासजी