
उम्मग्गदेसणो मग्गदूसणो मग्गविप्पडिवणी च ।
मोहेण य मोहिंतो संमोह भावणं कुणइ॥189॥
जो कुमार्ग का उपदेशक है सत्पथ में जो दूषण दे ।
वर्ते पथ विपरीत, मोह से मोहित वह संमोहक है॥189॥
अन्वयार्थ : जो उन्मार्ग का उपदेशक हो, सम्यग्ज्ञान को दूषण लगाने वाला हो, सम्यक् मार्ग सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र के विरुद्ध प्रवर्तने वाला हो, मिथ्याज्ञान से मोही हो, जिसके स्वस्वरूप-परस्वरूप का ज्ञान न हो, वह संमोही भावना करता है ।
सदासुखदासजी