एदाओ पंच वज्जिय इणमो छठ्ठीए विहरदे धीरो ।
पंचसमिदो तिगुत्तो णिस्संगो सव्वसंगेसु॥191॥
पंच समिति त्रयगुप्ति सुशोभित अनासक्त परिग्रह में हैं ।
पंच भावना तजकर यतिवर छठी भावना भाते हैं॥191॥
अन्वयार्थ : इन पंच भावनाओं को त्याग कर छठी भावना में प्रवर्तन करने वाला साधु कैसा

  सदासुखदासजी