
तवभावणाए पंचेंदियाणि दंताणि तस्स वसमेति ।
इंदियजोगायरिओ समाधिकरणाणि सो कुणइ॥193॥
पाँचों इन्द्रिय दमित हुईं वश में होती हैं तपसी के ।
इन्द्रिय को वश करने वाले रत्नत्रय साधन करते॥193॥
अन्वयार्थ : तपोभावना, जो अनशनादि तपश्चरण उसके द्वारा पाँचों इन्द्रियाँ दमन करने से साधु के वशीभूत होती हैं और इन्द्रियों को अपने वश करके इन्द्रियों को शिक्षा देने वाला साधु ही रत्नत्रय के समाधान/सावधानी पूर्वक क्रिया करता है ।
सदासुखदासजी