+ यहाँ दृष्टान्त कहते हैं - -
जोग्गमकारिज्जंतो अस्सो सुहलालिओ चिरं कालं ।
रणभूमीए वाहिज्जमाणओ जह ण कज्जयरो॥195॥
योग्याभ्यास विहीन अश्व को सुख से पाला-पोषा हो ।
युद्ध भूमि में करे पलायन वैसे ही यति को जानो॥195॥
अन्वयार्थ : जैसे चलना - परिभ्रमण उल्लंघनादि योग अभ्यास जिसे नहीं कराया और बहुत काल पर्यंत खान-पानादि के द्वारा सुखपूर्वक जिसे लाड/प्यार किया - ऐसा अश्व/घोडा, वह रणभूमि/ युद्ध के मैदान में चलाने पर अपना कार्य करने में समर्थ नहीं होता । वैसे ही दृष्टांत पूर्वक स्वरूप का उपदेश तीन गाथाओं में कहते हैं -

  सदासुखदासजी