
बहुसो वि जुद्ध भावणाए ण भडो हु मुज्झदि रणम्मि ।
तह सत्त भावणाए ण मुज्झदि मुणी वि वोसग्गे॥204॥
बालमरण जो किये अनन्त मुनीश्वर उनका करें विचार ।
मरणकाल में भी उनको नहिं होता है भयरूप विकार॥204॥
अन्वयार्थ : जैसे बहुत बार युद्ध की भावना/अभ्यास के द्वारा योद्धा रण में मोह/अचेतन को प्राप्त नहीं होता । वैसे ही सत्त्वभावना के द्वारा मुनि भी मनुष्य, तिर्यंच, देवादि के द्वारा चलायमान करने पर भी मोह/अज्ञान, मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं होते ।
सदासुखदासजी