+ वही दृष्टांत द्वारा कहते हैं- -
भयणीए विधम्मिज्जंतीए एयत्तभावणाए जहा ।
जिणकप्पिदो ण मूढो खवओ वि ण मुज्झइ तधेव॥206॥
जिनकल्पीमुनि नागदत्त निजभगिनी का लख अनुचित कार्य ।
मोहित हुए न भावना1 बल से अन्य क्षपक भी इसीप्रकार॥206॥
अन्वयार्थ : जैसे जिनकल्पी जिनलिंग धारी नागदत्त नामक मुनि अयोग्य धर्म को भी कराने वाली बहन में एकत्व भावना के बल से मूढता को प्राप्त नहीं हुए; वैसे ही अन्य मुनि भी एकत्व भावना के बल से मूढता को प्राप्त नहीं होते ।
इसप्रकार एकत्वभावना अधिकार में असंक्लिष्ट भावना के पंच भेदों में एकत्वभावना पूर्ण की ।
अब धृतिबल भावना को दो गाथाओं द्वारा कहते हैं । दु:ख आने पर भी कायरता का अभाव होना धृति, धैर्य, बल है, उसका अभ्यास करना धृतिबल भावना है ।

  सदासुखदासजी