
धिदिधणिदवद्धकच्छो जोधेइ अणाइलो तमच्चाई ।
धिदिभावणाए सूरो संपुण्णमणोरहो होई॥208॥
दृढ़ता पूर्वक कमर कसे अरु धैर्य सहित नहिं घबराये ।
धृति भावना धर कर युद्ध करें मनवांछित फल पावे॥208॥
अन्वयार्थ : जो चार प्रकार के उपसर्ग से सहित और दुर्धर संकट रूप है वेग जिनका और अल्प-पराक्रमियों को भय कराने वाली समस्त क्षुधादि बाईस परीषह की सेना, उसे भी धृति भावना के द्वारा शूरवीर मुनि जीतकर परिपूर्ण मनोरथ का धारी होता है । कैसे हैं शूरवीर मुनि? धैर्यरूप निश्चल बाँधी है कमर जिनने और जो कर्म से युद्ध करने में अनाकुल/आकुलता रहित हैं, बाधा रहित हैं ।
सदासुखदासजी