एयाए भावणाए चिरकालं हि विहरेज्ज सुद्धाए ।
काऊण अत्तसुद्धिं दंसणाणाणे चरित्ते य॥209॥
पंच प्रकार भावना बल से आत्मशुद्धि करके चिरकाल ।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित रत्नत्रय में मुनि करे विहार॥209॥
अन्वयार्थ : जो पंच प्रकार की विशुद्ध/असंक्लिष्ट भावना में चिरकाल प्रवर्तते हैं, वे दर्शनज्ञान- चारित्र में निरतिचार आत्मा की शुद्धि को प्राप्त कर सल्लेखना को प्राप्त होते हैं ।
इति सविचार भक्तप्रत्याख्यानमरण के चालीस अधिकारों में भावना नामक दशवाँ अधिकार अट्ठाईस गाथाओं में पूर्ण किया ।

  सदासुखदासजी