
एवं भावेमाणो भिक्खू सल्लेहणं उवक्कइ ।
णाणविहेण तवसा बज्झेणब्भंतरेण तहा॥210॥
उक्त भावना भानेवाले मुनिवर करते विविध प्रकार ।
बाह्याभ्यन्तर तप से सल्लेखना करें वे मुनि प्रारम्भ॥210॥
अन्वयार्थ : ऐसी भावना करने वाले जो साधु, वे अनेक प्रकार के बाह्य-अभ्यंतर तपों के द्वारा सल्लेखना अर्थात् शरीर और कषाय का कृश करना, उसे प्रारंभ करते हैं ।
सदासुखदासजी