+ अब बाह्य सल्लेखना का उपाय कहते हैं- -
सव्वे रसे पणीदे णिज्जूहित्ता दु पत्तलुक्खेण ।
अण्णदरेणुवधाणेण सल्लिहइ य अप्पयं कमसो॥212॥
बलवर्धक सब रस को त्यागें ग्रहण करें रूखा भोजन ।
कोई एक विशेष नियम ले क्रमशः कृश करते निज तन॥212॥
अन्वयार्थ : सर्व बलवान जो रस, उसका त्याग करके और प्राप्त हुआ जो रूक्ष भोजन अथवा और भी रसादि रहित भोजन, उसके द्वारा शरीर को अनुक्रम से कृश करना ।

  सदासुखदासजी