
अणसण अवमोरियं चाओ य रसाण वृत्तिपरिसंखा ।
कायकिलेसो सेज्जा य विवित्ता बाहिरतवो सो॥213॥
अनशन, अवमौदर्य, रसों का त्याग, वृत्ति का परिसंख्यान ।
कायक्लेश तथा विविक्त शय्यासन को बहिरंग तप जान॥213॥
अन्वयार्थ : 1. अनशन, 2. अवमौदर्य, 3. रसपरित्याग, 4. वृत्तिपरिसंख्यान, 5. कायक्लेश तथा 6. विविक्त शय्यासन - ऐसे ये छह प्रकार के बाह्य तप कहे हैं ।
सदासुखदासजी