
चत्तारि महावियडीओ होंति णवणीदमज्जमंसमहू ।
कंखापसंगदप्पाऽसंजमकारीओ एदाओ॥218॥
मक्खन मद्य मांस और मधु महाविकृति जानो चार ।
क्रमशः गृद्धि, प्रसंग2 दर्श अविरति का करते हैं उत्पाद॥218॥
अन्वयार्थ : नवनीत/माखन, मद्य/मदिरा, मांस, मधु/शहद - ये चार महाविकृतियाँ हैं । भगवान के परमागम में ये चार महाविकार कहे हैं, अल्पविकार नहीं हैं । उसमें नवनीत तो कांक्षा अर्थात् अति गृद्धता करती है । वह अति गृद्धता क्या है? अति लंपटता, बारंबार प्रवृत्ति करता है । मद्य/मदिरा, प्रसंग अर्थात् अगम्य गमन कराती है; अत: जो मदिरापान करता है, उसे खाद्य-अखाद्य, सेव्य-असेव्य, माता-स्त्री इत्यादि का विचार ही नहीं रहता और मांस भक्षण दर्प कराता है । मधु अर्थात् शहद भक्षण, वह असंयम कराता है ।
सदासुखदासजी