
इच्चेवमादि विविहो णायब्वो हवदि रसपरिच्चाओ ।
एस तवो भजिदव्वो विसेसदो सल्लिहंतेण॥222॥
इत्यादिक बहुभेद युक्त है रस परित्याग जानने योग्य ।
तन सल्लेखन करनेवाले को है यह तप करने योग्य॥222॥
अन्वयार्थ : अनेक प्रकार के रस परित्याग नामक तप जानने योग्य हैं । सल्लेखना करने वाले साधु को पूर्व में कहे गये रस परित्याग नामक तप विशेषरूप से करने योग्य हैं । इस प्रकार रस परित्याग तप कहा ।
सदासुखदासजी