
पाडयणियंसणभिक्खा परिमाणं दत्तिघासपरिमाणं ।
पिंडेसणा य पाणेसणा य जागूय पुग्गलया॥224॥
द्वार नियन्त्रण1 भिक्षा2 एवं दत्ति ग्रास का हो परिमाण3 ।
पिण्डेसणा4 पाणेसणा5 यवागू तथा धान्य6 परिमाण॥224॥
अन्वयार्थ : एक मुहल्ले में बखरी/बाखर/घर में भोजन मिलेगा तो ही ग्रहण करूँगा या दो मुहल्ले की बखरी में, इत्यादि मुहल्लों के घरों का प्रमाण करके भोजन ग्रहण की प्रतिज्ञा करते हैं तथा इस गृह के बाहर के परिकर की भूमि में ही प्रवेश करूँगा, गृह के अभ्यंतर/भीतर प्रवेश नहीं करूँगा - ऐसी प्रतिज्ञा करके भोजन करना, यह णियंसण नामक परिमाण है ।
तथा भिक्षा का प्रमाण करते हैं कि इतने घरों में जाऊँगा या एक, दो, चार, पाँच या सात में भोजन मिलेगा तो ग्रहण करूँगा, अन्य में नहीं । दातार का प्रमाण करते हैं कि एक के द्वारा दी गई भिक्षा ग्रहण करूँगा या दो के द्वारा दी गई भिक्षा ग्रहण करूँगा । तथा ग्रासों का प्रमाण करके ग्रहण करना, पिंडरूप ही ग्रहण करूँगा या अपिंडरूप ही ग्रहण करूँगा । यहाँ पिंड अर्थात् जिस आहार का इकट्ठा पिंड बँध जाये, वह पिंडरूप है और जिसका पिंड न बँधे - ऐसा बिखरा हुआ आहार अपिंडभूत है । उनकी प्रतिज्ञा करते हैं । तथा पाणेसणा/ गीला - बहुत अधिक द्रवीभूत जिसे पिया जाये, उसकी प्रतिज्ञा करते हैं । जागू/भेदडी/खिचडी, यवागू/दलिया/राबडी इत्यादि; चोला, मोठ/मठ, मूँग, चना, मसूर इत्यादि मिलेगा तो भोजन लूँगा, अन्य प्रकार से ग्रहण नहीं करूँगा ।
1. इसी द्वार से प्रवेश करूँगा 2. इतनी भिक्षा लूँगा 3. इतने ग्रास लूँगा 4. पिण्डरूप भोजन 5. पेयरूप भोजन 6. चना-मसूर आदि धान्य 7. व्यंजनों से मिश्रित शाक 8. चारों ओर शाक और बीच में भात रखा हो 9. चारों ओर व्यंजन और बीच में अन्न रखा हो 10. व्यंजनों के बीच पुष्पावलि के समान चावल रखा हो 11. शुद्ध अन्न से मिले हुए शाक आदि व्यंजन 12. जिससे हाथ लिप जाये 13. जिससे हाथ न लिपे 14. चावल रहित पेय 15. चावल सहित पेय
सदासुखदासजी