
संसिट्ठ फलिह परिखा पुप्फोवहिदं व सुद्धगोवहिदं ।
लेवडमलेवडं पाणयं च णिस्सित्थगमसित्थं॥225॥
संसिट्ठ7 फलिह8 परिखा9 अरु पुष्पोवहित10 शुद्धगोवहित11 कहे ।
लेपक12 और अलेपक13 सिक्थ विहीन14 ससिक्थज15 पेय रहे॥225॥
अन्वयार्थ : ऐसा प्रमाण करते हैं - शाक और कुल्माष/उडद, चावल या मोटा धान्य, कुलथी आदि जो धान्य विशेष से मिला हुआ हो, उसको संसृष्ट कहते हैं; अत: कभी ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं कि शाक-कुलथी आदि मिला हुआ ही खाऊँगा, अन्य को नहीं तथा भोजन में दातार भोजन लावें, उसमें सर्व तरफ तो शाक हो और बीच में भात हो, उसे फलिह कहते हैं । उस फलिह की प्रतिज्ञा करते हैं और चारों ओर तरकारी/सब्जी हो, बीच में अन्न रखा हो, उसे परिखा कहते हैं; उसकी प्रतिज्ञा करते हैं तथा व्यंजन/सब्जी के बीच में पुष्पांे की भाँति भात हो, उसे पुष्पोपहित कहते हैं, उसकी प्रतिज्ञा करते हैं । मोठ इत्यादि अन्न से मिला हुआ शाक व्यंजनादि, उसे शुद्धोगोवहिद कहते हैं, उसकी प्रतिज्ञा करते हैं । हाथ में लिपट/चिपक जाये, उस लेपकारी भोजन को लेवड कहते हैं, उसकी प्रतिज्ञा करते हैं तथा हाथ में न चिपके, उसे अलेवड कहते हैं, उसकी प्रतिज्ञा करते हैं । पीने की वस्तु को पानक कहते हैं तथा चावल सहित हो, उसे ससिक्थ कहते हैं और चावल रहित मांड आदि को सिक्थ रहित कहते हैं ।
- ऐसी प्रतिज्ञा करके भोजन के लिये गमन करें, वह वृत्तिपरिसंख्यान है ।
सदासुखदासजी