समपलियंक णिसेज्जा समपदगोदोहिया च उक्कुडिया ।
मगरमुह हत्थिसंुडी गोणणिसेज्जद्धपलियंका॥229॥
सम-पर्यंकासन27 सम-पद28 गोदूहन29 अथवा उकडू30 ।
मगरमुखी31 या हस्तिसूड़32 या गवासनार्द्ध पर्यंकासन33॥229॥
अन्वयार्थ : सम्यक् पर्यंक निषद्यासन तथा समपाद स्थान पर आसन, गौ को दोहने के आसन के समान आसन, उत्कटिक आसन, ऊर्ध्व अंग संकोच करके आसन, मकर मत्स्य के मुख की तरह पैर करके आसन करना, वह मकर मुखासन है । हाथी की सूँड की तरह पाद प्रसारण करके आसन करना, वह हस्ति-शुंडासन है । गाय के आसन समान आसन, वह गो-निषद्यासन हैतथा गो-निषद्या आसनवत् अर्द्ध-पर्यंकासन है - इत्यादि आसन योग द्वारा काय-क्लेश तप है ।

  सदासुखदासजी