अब्भुट्ठणं च रादो अण्हाणमदंतधोवणं चेव ।
कायकिलेसो एसो सीदुण्हादावणादी य॥232॥
रात्रि में हो नहीं शयन, अस्नान दन्तशोधन नहिं लेश ।
सर्दी-गर्मी में आतापन योग कहे सब काय-क्लेश॥232॥
अन्वयार्थ : रात्रि में जागना, स्नान का त्याग, अदंत धोवन/दाँतों को धोने का त्याग, शीत, उष्ण, आतापनादि का सहना, वह काय-क्लेश तप है । इस प्रकार काय-क्लेश कहा । इससे शरीर में सुखियापने का स्वभाव मिटता है तथा परीषह सहने के लिये समर्थ होता है एवं रोगादि आने पर कायर नहीं होता, आराधना से नहीं चिगता है ।

  सदासुखदासजी