+ और भी कहते हैं - -
वियडाए अवियडाए समविसमाए बहिं च अंतो वा ।
इत्थिणउंसयपसुवज्जिदाए सीदाए उसिणाए॥234॥
खुले द्वार या बन्द द्वार हों भूमि विषम अथवा सम हो ।
नारी तथा नपुंसक एवं पशु विरहित, शीतोष्ण कहो॥234॥
अन्वयार्थ : वसतिका उघडे द्वारों की हो या ढके द्वारों की हो, सम भूमि समन्वित ओधक/ दहरी हो या जिसकी देहली के नीचे विषम भूमि हो या शीत-उष्णता सहित हो या शीत- उष्ण की बाधा रहित हो, बाहर में प्रगट/स्पष्ट मकान दिखते हों या अभ्यंतर हो; परंतु जिसमें स्त्रियों, नपुंसकों, पशुओं का आना-जाना न हो, उसे अंगीकार करें । जिस स्थान में स्त्री,

  सदासुखदासजी