+ वह कैसी हो? यह कहते हैं- -
सुण्णघरगिरिगुहारुक्खमूल - आगंतुगारदेवकुले ।
अकदप्पब्भारारामघरादीणि य विचित्ताई॥236॥
सूना घर,गिरि गुफा, वृक्ष का मूल, देवकुल अतिथि निवास ।
शिक्षागृह, अकृतगृह अथवा क्रीड़ागृह ये विविक्त वसति॥236॥
अन्वयार्थ : सूना गृह हो, गिरि की गुफा हो, वृक्ष का मूल हो, आगंतुक/आने-जाने वालों के लिये विश्राम का मकान हो तथा शिक्षागृह हो, अकृत प्राग्भार/किसी के द्वारा आपके (मुनि के) निमित्त से नहीं बनाया हो, बाग-बगीचे, महल, मकान हो; वह विविक्तवसतिका साधुओं के रहने योग्य है ।

  सदासुखदासजी