+ जिस वसतिका में ये दोष न हों, वह दिखाते हैं- -
कलहो बोलो झंझा वामोहो संकरो ममत्तिं च ।
ज्झाणाज्झयणविघादो णत्थि विवित्ताए वसधीए॥237॥
विविक्तवसति में शोर, अयोग्य मिलाप, कलह अरु क्लेश न हो ।
नहिं ममत्व, नहिं चित विक्षोभ सुध्यानाध्ययन में विघ्न न हो॥237॥
अन्वयार्थ : यह वसतिका मेरी है - ऐसा ममत्व न उपजे, ऐसी हो और जिसमें ध्यान, स्वाध्याय बिगडने

  सदासुखदासजी