
जो णिज्जरेदि कम्मं असंवुडो सुमहदावि कालेण ।
तं संवुडो तवस्सी खवेदि अंतोमुहुत्तेण॥239॥
बहुत काल में कर्म निर्जरा अशुभयोगरत यति करे ।
अल्प काल में संवृत1 तपसी उन कमाब को क्षीण करे॥239॥
अन्वयार्थ : संवर रहित तपस्वी बाह्य तप करके जिन कर्म की बहुत काल में निर्जरा करता है; उन कर्म की निर्जरा तीन गुप्ति, पाँच समिति, दशलक्षण धर्म, बारह भावना, परीषह जय रूप संवर के धारक तपस्वी अंतर्मुहूर्त काल में करते हैं ।
सदासुखदासजी