बहुगाणं संवेगो जायदि सोमत्तणं च मिच्छाणं ।
मग्गो य दीविदो भगवदो य आणाणुपालिया होदि॥248॥
बहुजन हों भयभीत जगत से मिथ्यादृष्टि सौम्य बनें ।
मुक्तिमार्ग भी होय प्रकाशित जिन-आज्ञा अनुपालन हो॥248॥
अन्वयार्थ : बाह्य तप के प्रभाव से बहुत जीवों को संसार से भय उत्पन्न होता है । जैसे एक को युद्ध के लिये सजा हुआ (तैयार) देखकर अन्य अनेक जन भी युद्ध के लिये उद्यमी हो जाते हैं । वैसे ही एक को कर्म नाश करने में उद्यमी देखकर अन्य अनेक जन कर्म नाश करने के लिये उद्यमी हो जाते हैं तथा संसार पतन से भयभीत हो जाते हैं और मिथ्यादृष्टि जीवों के भी सौम्यता उत्पन्न होती है, सन्मुख हो जाती है । मुक्ति का मार्ग प्रकाशित होता है, मुनि मार्ग दीपता हुआ प्रगट दिखता

  सदासुखदासजी