पं-सदासुखदासजी
देहस्स लाघवं णेहलूहणं उवसमो तहा परमो ।
जवणाहारो संतोसदा य जहसंभवेण गुणा॥249॥
तन हलका हो, मिटे देह का राग तथा उपशम उत्कृष्ट ।
परिमित भोजन से सन्तुष्टि इत्यादिक गुण हों तप से॥249॥
अन्वयार्थ :
बाह्य तप अवश्य ही अंगीकार करना चाहिए ।
सदासुखदासजी