
एवं उग्गमउप्पादणेसणासुद्धभत्तपाणेण ।
मिदलहुयविरसलुक्खेण य तवमेदं कुणदि णिच्चं॥250॥
इसप्रकार उद्गम-उत्पादन और एषणा दोष विहीन ।
शुद्ध, अल्प, नीरस, रूखा भोजन-जल ले तप करें यती॥250॥
अन्वयार्थ : इसप्रकार जो साधु हैं; वे उद्गम, उत्पादन, एषणा दोष रहित शुद्ध तथा प्रामाणिक, हलका, रस रहित, रूक्ष भोजन तथा पान/जल ग्रहण करके नित्य ही तप करते हैं ।
सदासुखदासजी