+ अब और भी शरीर सल्लेखना के लिये तप का उपदेश करते हैं- -
उल्लीणोल्लीणेहिं य अहवा एक्कंतवढ्ढमाणेहिं ।
सल्लिहइ मुणी देहं आहारविधिं पयणुगिंतो॥251॥
वर्धमान या हीयमान या पूर्ण वृद्धिंगत तप द्वारा ।
क्रमशः भोजन अल्प करें मुनि सल्लेखना ग्रहण करता॥251॥
अन्वयार्थ : वर्धमान, हीयमान ऐसे तप अथवा एकांत से प्रतिदिन वर्धमान ऐसे अनशनादि

  सदासुखदासजी