
सदि आउगे सदि बले जाओ विविधाओ भिक्खुपडिमाओ ।
ताओ वि ण बाधंते जहाबल सल्लिहंतस्स॥254॥
आयु और बल के अनुसार धरें मुनिवर सल्लेखन को ।
विविध भिक्षु-प्रतिमा भी उनको बाधा करती नहीं अहो॥254॥
अन्वयार्थ : आयु के विद्यमान रहने तथा देह में बल विद्यमान रहने पर अपनी शक्तिप्रमाण सल्लेखना करने वाले साधु के अनेक प्रकार के साधु धर्म भी बाधा को प्राप्त नहीं होते ।
सदासुखदासजी