सल्लेहणा सरीरे तवोगुणविधी अणेगहा भणिदा ।
आयंबिलं महेसी तत्थ दु उक्कस्सयं विंति॥255॥
तन की सल्लेखना हेतु जो विविध भाँति तपभेद कहे ।
उनमें है आचाम्ल1 अहो उत्कृष्ट महर्षि कहें खरे॥255॥
अन्वयार्थ : शरीर की सल्लेखना के निमित्त अनेक प्रकार तपोगुण की विधि कही, उन अनेक प्रकार के तपरूप गुणों की विधि में भगवान गणधर देव आचाम्ल को उत्कृष्ट तप कहते हैं । वह आचाम्ल क्या है? वही कहते हैं-

  सदासुखदासजी