जोगेहिं विचित्तेहिं दु खवेइ संवच्छराणि चत्तारि ।
वियडी णिज्जूहित्ता चत्तारि पुणो वि सोसेदि॥258॥
श्रमण बिताते चार वर्ष हैं विविध काय-क्लेशों द्वारा ।
पुनः बिताते चार वर्ष रस-त्याग करें शोषण तन का॥258॥
अन्वयार्थ : विचित्र अर्थात् अनेक प्रकार के काय-क्लेशादि योग, उनसे चार संवत्सर/चार वर्ष पूर्ण करें और चार वर्ष विकृति/रस, उनका त्याग करके शरीर को कृश करना ।

  सदासुखदासजी