+ इस प्रकार शरीर सल्लेखना कहकर अब अभ्यंतर सल्लेखना का क्रम कहते हैं- -
एवं सरीरसल्लेहणाविहिं बहुविहा वि फासेंतो ।
अज्झवसाणविशुद्धि खणमवि खवओ ण मुंचेज्जा॥261॥
इस क्रम से नाना प्रकार का तन-सल्लेखन श्रमण करें ।
परिणामों की निर्मलता को इक पल को भी नहिं छोड़ें॥261॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार शरीर सल्लेखना की विधि बहुत प्रकार से करते हुए साधुजनपरिणामों की उज्ज्वलता को क्षण मात्र भी नहीं छोडते हैं ।

  सदासुखदासजी