
कोधं खमाए माणं च मद्दवेणाज्जवं च मायं च ।
संतोषेण य लोहं जिणदु खु चत्तारि वि कसाए॥265॥
क्रोध क्षमा से और मार्दव से होता है मान परास्त ।
आर्जव से माया एवं सन्तोष भाव से लोभ परास्त॥265॥
अन्वयार्थ : क्रोध को उत्तम क्षमा द्वारा, मान को मार्दव से, माया को आर्जव से और लोभ को संतोष के द्वारा - ऐसे चार कषायों को जीतना ।
सदासुखदासजी