+ अब कहते हैं कि जो कषाय उत्पन्न होने के मूल कारण हैं, उनका त्याग करना योग्य है- -
कोहस्स य माणस्स मायालोभाण सो ण एदि वसं ।
जो ताण कसायाणं उप्पत्तिं चेव वज्जेइ॥266॥
जो कषाय भावों की उत्पत्ति का ही यदि करे निरोध ।
तो वह क्रोध-मान-माया अरु लोभ के नहीं वश में हो॥266॥
अन्वयार्थ : जो इन कषायों की उत्पत्ति का ही नाश करता है; वह इन क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषायों के वश नहीं होता ।

  सदासुखदासजी