
तह चेव णोकसाया सल्लिहियव्वा परेसुवसमेण ।
सण्णाओ गारवाणि य तह लेस्साओ य असुहाओ॥273॥
इसी तरह उपशम भावों से नोकषाय भी करना हीन ।
संज्ञा गारब और अशुभ लेश्याओं को भी करना क्षीण॥273॥
अन्वयार्थ : वैसे ही हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेद - ये नौ नोकषायें हैं - इनको परम उपशम भावों से क्षीण करना योग्य है और आहार की वांछा वह आहार संज्ञा, भय की वांछा वह भय संज्ञा, मैथुन की वांछा वह मैथुन संज्ञा और परिग्रह की वांछा वह परिग्रह संज्ञा - इन चारों संज्ञाओं को क्षीण करना योग्य है । ऋद्धि का गर्व, रसवान भोजन मिलने का गर्व तथा साता/सुख रहे, उसका गर्व - ऐसे तीन गारव को कृश करना योग्य है एवं तीन अशुभ लेश्याओं का त्याग करना योग्य है ।
सदासुखदासजी